हनुमान चालीसा लिरिक्स हिंदी में || Hanuman Chalisa Lyrics

Shree Hanuman Chalisa Lyrics: हनुमान चालीसा का पाठ नियमित रूप से करने से भगवान हनुमान, श्रीराम और भगवान शिव-पार्वती की कृपा प्राप्त होती है। हनुमान जी की पूजा से जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि आती है, और हर तरह के भय, शंका और संकट समाप्त हो जाते हैं। विशेष रूप से मंगलवार और शनिवार को हनुमान चालीसा का पाठ करना बहुत लाभकारी माना जाता है।

हनुमान जी को आठ अमर (चिरंजीवी) व्यक्तियों में से एक माना जाता है और उनकी आराधना से भगवान राम की कृपा भी मिलती है। तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा की रचना की थी, ताकि भक्त आसानी से हनुमान जी की महिमा का अनुभव कर सकें और उनके जीवन से हर संकट को दूर कर सकें।

Hanuman Chalisa Lyrics

श्री हनुमान चालीसा के लाभ:

  • हनुमान चालीसा का पाठ मंगल, शनि और पितृ दोष से मुक्ति दिलाता है।
  • यह पाठ जीवन में आ रही सभी बाधाओं को दूर करता है।
  • इसे 7, 11, या 108 बार प्रतिदिन पढ़ने से जीवन के सारे रास्ते आसान और काम सफल होते हैं।

हनुमान चालीसा का महत्व:
हनुमान चालीसा का हर एक शब्द बेहद प्रभावशाली है। अगर इसे पूरे मनोयोग से और श्रद्धा भाव से पढ़ा जाए, तो व्यक्ति के जीवन में हर मुश्किल आसान हो जाती है।

आइए, अब हम पढ़ें श्री हनुमान चालीसा का पूर्ण पाठ:

श्री हनुमान चालीसा के प्रत्येक शब्द में इतनी शक्ति और प्रभाव है कि अगर इसे पूरे मनोयोग से प्रतिदिन 7 बार, 11 बार, या 108 बार पढ़ा जाए तो जीवन की हर बाधा दूर होने लगती है, हर रास्ता सरल और हर काम सफल होने लगता है। प्रस्तुत है श्री हनुमान चालीसा:

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि !
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि !!

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार !
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार !!

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर..
जय कपीस तिहुं लोक उजागर॥

रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥1॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥2॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा ॥3॥

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै॥4॥

संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥5॥

विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर ॥6॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया ॥7॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥8॥

भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे ॥9॥

लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥10॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥11॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥12॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा ॥13॥

जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते ॥14॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥15॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥16॥

जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥17॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं ॥18॥

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥19॥

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥20॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना ॥21॥

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै ॥22॥

भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥23॥

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥24॥

संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥25॥

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥26॥

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै ॥27॥

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥28॥

साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥29॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता ॥30॥

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥31॥

तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै ॥32॥

अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई ॥33॥

और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥34॥

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥35॥

जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥36॥

जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥37॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥38॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा ॥39॥

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥

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